अब्दुल गनी खान
मुंबई: राज्य का राजनीतिक तापमान एक बार फिर तेजी से बढ़ता दिखाई दे रहा है। सूत्रों के अनुसार, नवंबर के पहले सप्ताह में महाराष्ट्र में स्थानीय स्वराज संस्थाओं के चुनावों की घोषणा हो सकती है। इसके साथ ही राज्य में आचार संहिता लागू होने की पूरी संभावना है। चुनावी बिगुल बजने से पहले ही सत्ताधारी और विपक्षी दलों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं।
राजनीतिक गलियारों में इस बात को लेकर चर्चाएं तेज हैं कि चुनावों की शुरुआत किस स्तर से होगी — क्या पहले जिला परिषद और पंचायत समितियों के चुनाव होंगे या फिर नगर परिषद और नगर पंचायतों के?
सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य चुनाव आयोग को जनवरी 2026 के अंत तक संपूर्ण चुनाव प्रक्रिया पूर्ण करने के निर्देश दिए हैं। इसी के मद्देनज़र आयोग ने सभी स्तरों पर तेजी से तैयारी शुरू कर दी है। जिला परिषद और पंचायत समितियों के लिए गट एवं गणरचना तथा आरक्षण प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है। नगर परिषद और नगर पंचायतों में भी नगराध्यक्ष पदों का आरक्षण तय हो गया है, जबकि प्रमुख महानगरपालिकाओं के लिए आरक्षण की घोषणा अभी बाकी है।
विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि राज्य चुनाव आयोग सबसे पहले नगर परिषद और नगर पंचायतों के चुनाव कराने की दिशा में काम कर रहा है। इसके बाद जिला परिषद और पंचायत समिति चुनाव संपन्न होंगे। अंततः राज्य की बड़ी महानगरपालिकाओं के चुनावी रण का ऐलान सबसे अधिक चर्चा में रहेगा।
इस बीच विपक्षी दलों ने मतदाता सूचियों में गड़बड़ियों का आरोप लगाते हुए चुनाव प्रक्रिया को कुछ समय के लिए टालने की मांग की है। हालांकि, चुनाव आयोग फिलहाल किसी भी प्रकार की देरी के पक्ष में नहीं दिख रहा है।
राज्य में नवंबर के पहले सप्ताह में आचार संहिता लागू होने की संभावना ने राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। सभी दलों ने अपने संभावित उम्मीदवारों की समीक्षा, टिकट वितरण और स्थानीय स्तर पर शिकायतों के निपटारे की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मतदाताओं में सत्ताधारी दल के प्रति असंतोष और बढ़ता जनरोष इस बार के चुनावी परिणामों में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

